भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 1 बनाम 1872 अधिनियम – एक तुलनात्मक विश्लेषण
भारत की न्यायिक प्रक्रिया में साक्ष्य का महत्व जितना 1872 में था, उतना ही आज भी है — फर्क सिर्फ़ यह है कि आज हम डिजिटल युग में जी रहे हैं। ऐसे में भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की शुरुआत धारा 1 से होती है, जो इसके क्षेत्राधिकार, प्रभावशीलता और नामकरण को निर्धारित करती है। आइए देखें कि यह धारा कैसे Indian Evidence Act, 1872 से अलग है और क्यों यह बदलाव जरूरी था।
1️⃣ नामकरण और प्रभाव की तिथि
- 1872: The Indian Evidence Act, 1872 — लागू 1 सितंबर 1872
- 2023: भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 — लागू 1 जुलाई 2024
📌 नया अधिनियम केवल नाम में भारतीय नहीं है, बल्कि सोच और संरचना में भी आत्मनिर्भर है।
2️⃣ क्षेत्रीय विस्तार और दायरा
- 1872: पूरे भारत पर लागू, पर कुछ अपवाद थे (जैसे courts-martial)
- 2023: अब courts-martial भी शामिल हैं
📌 सैन्य और सिविल दोनों न्यायालय अब एक समान साक्ष्य कानून के अधीन हैं।
3️⃣ कहां लागू नहीं होता
दोनों अधिनियम Affidavits और Arbitration proceedings पर लागू नहीं होते। यह नियम अभी भी यथावत हैं।
4️⃣ डिजिटल साक्ष्य और आधुनिक दृष्टिकोण
2023 का अधिनियम डिजिटल युग की जरूरतों को पूरा करता है — इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, साइबर अपराध, डेटा ऑथेंटिसिटी जैसे नए पहलुओं को ध्यान में रखकर इसे तैयार किया गया है।
📊 तुलनात्मक सारांश
| विषय | Evidence Act 1872 | Sakshya Adhiniyam 2023 |
|---|---|---|
| नाम | Indian Evidence Act | भारतीय साक्ष्य अधिनियम |
| लागू होने की तिथि | 1 सितंबर 1872 | 1 जुलाई 2024 |
| Courts-martial पर लागू | ❌ | ✅ |
| Affidavits और Arbitration पर | ❌ लागू नहीं | ❌ लागू नहीं |
| डिजिटल साक्ष्य | ❌ सीमित | ✅ व्यापक |
🔚 निष्कर्ष: क्या बदला और क्यों जरूरी था?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 सिर्फ नाम में बदलाव नहीं है, बल्कि यह न्याय प्रणाली को आधुनिक, डिजिटल और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह कानून न्याय के डिजिटल भविष्य की नींव रखता है और न्यायिक प्रक्रियाओं में समानता, तकनीकी अनुकूलता और गति लाता है।
लेखक: SP Shahi – अधिवक्ता, इलाहाबाद हाईकोर्ट
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